173 Gautam Buddha Quotes In Hindi | भगवान बुद्ध के अनमोल वचन

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi
173 Gautam Buddha Quotes In Hindi

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi, भगवान बुद्ध के अनमोल वचन, Gautam Buddha Quotes Hindi, बुद्ध के प्रेरक विचार, Bhagwan Buddha Quotes In Hindi

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (1 TO 10)

(1) जब आदमी मलिन मन से बोलता व कार्य करता है तब दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है, जैसे गाडी के पहिए बेल के पैरों के पीछे-पीछे चलते हैँ।

(2) जब आदमी स्वच्छ मन से बोलता व कार्यं करता है तब सुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है, जैसे कभी साथ न छोड़नेवाली छाया आदमी के पीछे-पीछे चलती है।

(3) ‘मुझे गाली दी’, मुझें मारा’, ‘मुझें हराया’, ‘मुझे लूट लिया, जो ऐसी बातें सोचते रहते हैँ, उनका वैर कभी शांत नहीं होता।

(4) ‘मुझे गाली दी’, ‘मुझे मारा’, ‘मुझे हराया’, ‘मुझे लूट लिया’, जो ऐसी बातें नहीँ सोचते, उन्हीं का वैर शांत हो जाता है।

(5) बैर , बैर से कभी शांत नहीं होता, अबैर से ही बैर शांत होता है, यही संसार का सनातन नियम है।

(6) जो काम-भोग में रत है, जिसकी  इंद्रियाँ उसके काबू में नहीं हैं, जिसे भोजन की उचित मात्रा का ज्ञान नहीं है, जो आलसी है, जो उद्योगहीन है, उसे मार (शैतान) वैसे ही गिरा देता है, जैसे वायु दुर्बल वृक्ष को 

(7) जो काम-भोग में रत नहीं है, जिसकी इंद्रियां उसके काबू में हैं, जिसे भोजन की उचित मात्रा का ज्ञान है, जो श्रद्धावान तथा उद्योगी है, उसे मार (शैतान) वैसे ही नहीं हिला सकता, जैसे वायु हिमालय पर्वत को ।

(8) यदि घर की छत ठीक न हो तो जिस प्रकार उसमें वर्षा का प्रवेश हो जाता है, उसी प्रकार यदि संयम का अभ्यास न हो तो मन में राग प्रविष्ट हो जाता है ।

(9) यदि घर की छत ठीक हो तो जिस प्रकार उसमें बर्षा का प्रवेश नहीं होता, उसी प्रकार यदि संयम का अभ्यास हो तो मन में राग प्रविष्ट नहीं होता ।

(10) पापी मनुष्य दोनों जगह शोक करता है, यहां भी और परलोक में भी । अपने दुष्ट कर्म को देखकर वह शोक करता है, पीडित होता है।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (11 TO 20)

(11) शुभ कर्म करनेवाला मनुष्य दोनों जगह प्रसन्न रहता है, यहाँ भी और परलोक में भी। अपने शुभ कर्म को देखकर वह मुदित (आनंदित) होता है, प्रमुदित होता है ।

(12) पापी मनुष्य दोनों जगह संतप्त होता है, यहां भी और परलोक में भी । ‘मैंने पाप किया है’, ऐसा सोचकर संतप्त होता है, दुर्गति को प्राप्त होकर और संतप्त होता है।

(13) शुभ कर्म करनेवाला मनुष्य दोनों जगह आनंदित होता है, यहाँ भी और परलोक में भी । ‘मैंने शुभ कर्म किया है’, सोचकर वह आनंदित होता है, सुगति क्रो प्राप्त होकर और भी आनंदित होता है।

(14) धर्म-ग्रंथों का कितना ही पाठ करें लेकिन यदि प्रमाद ( आलस्य,सस्ती ) के कारण मनुष्य उन धर्म-ग्रंथों के अनुसार आचरण नहीं करता तो दूसरो कि गाए गिननेवाले ग्वाले की तरह वह श्रवणत्व का भागी नहीं होता।

(15) धर्म-ग्रंथों का चाहे थोडा ही पाठ करे लेकिन यदि राग, द्वेष तथा मोह से रहित कोई इंसान धर्मं के अनुसार आचरण करता है तो ऐसा बुद्धिमान, अनासक्त यहां-वहां दोनों जगह भोगों के पीछे न भागनेवाला इंसान ही श्रवणत्व का भागी होता है।

(16) जो पूर्व-ज़न्म को जानता है, जो स्वर्ग और नर्क का असली अर्थ समझता है, जिसका पुन: जन्म (व्यक्ति, अहंकार का ज़न्म) क्षीण हो गया, जो अभिज्ञावान है, जिसने निर्वाण प्राप्त कर लिया है, उसे मैँ ब्राह्मण कहता हूँ।

(17) बुद्धिमान मनुष्य दुष्करता से दिखाई देनेवाले, अत्यंत चालाक, जहॉ चाहे वहॉ चले जानेवाले चित्त की रक्षा करे। सँभालकर रखा गया चित्त सुख देनेवाला होता है।

(18) जिसका चित्त स्थिर नहीं, जो सद्धर्म को जानता नहीं, जिसका चित्त प्रसन्न नहीं, वह कभी प्रज्ञावान नहीं हो सकता।

(19) जिसका चित्त मल रहित है, स्थिर है, जो पाप-पुण्य विहीन है, उस जागरूक पुरुष के लिए भय नहीं है।

(20) शरीर को धड के समान (नश्वर)) और चित्त को नगर के समान जानकर, प्रज्ञारूपी हथियार लेकर मार (शैतान) से युद्ध करे । जीत लेने पर भी चित्त की रक्षा करें तथा अनासक्त रहें।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (21 TO 30)

(21) शत्रु, शत्रु कीं और बैरी, बैरी की जितनी हानि करता है, कुमार्ग की ओर गया हुआ चित्त मनुष्य की उससे कहीं अधिक हानि करता है।

(22) न माता-पिता, न दूसरे रिश्तेदार आदमी की उतनी भलाई करते हैं, जितनी भलाई सन्मार्ग की ओर गया हूआ चित्त करता है।

(23) राग आदि पुष्पो के चुनने में आसक्त आदमी को मृत्यु वैसे ही बहा ले जाती है, जैसे सोए हुए गॉव को नदी कीं बढी बाढ ।

(24) राग आदि पुष्पो के चुनने में आसक्त आदमी को यमराज काम भोगों में अतृप्त अवस्था में ही अपने वश में कर लेता है।

(25) न दूसरों के दोष न दूसरों के कृत-अकृत को देखें । आदमी को चाहिए कि वह अपने ही कृत-अकृत को देखे।

(26) जिस प्रकार सुंदर वर्णयुक्त किंतु गंध रहित पुष्प होता है, उसी प्रकार कथनानुसार कार्य न करनेवाले की सुभाषित बाणी निष्फल होती है।

(27) जिस प्रकार सुंदर वर्णयुक्त और सुगंध युक्त पुष्प होता है, उसी प्रकार कथनानुसार कार्य करनेवाले की सुभाषित वाणी सफ़ल होती है।

(28) जिस प्रकार कोई  फूलों के ढेर में से बहुत सारी मालाएँ गूँथे, उसी प्रकार संसार में पैदा हुए प्राणी को चाहिए कि वह बहुत से शुभ कर्म करे ।

(29) यह जो तगर और चंदन की गंध है, यह अल्प मात्र है। सदाचारियों की उत्तम सुगंध देवताओं तक फैलती है.

(30) न तो पुष्पो की सुगंध, न चंदन की सुगंध, न तगर व चमेली कीं सुगंध हवा के विरुद्ध जाती है लेकिन सत्पुरुषों की सुगंध हवा के विरुद्ध भी जाती है। सत्पुरुष सभी दिशाओ में अपनी सुगंध फैलाते हैँ।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (31 TO 40)

(31) चंदन, तगर, कमल या जूही, इन सभी की सुगंधियों से सदाचार की सुगंध बढकर है।

(32) जागते रहनेवाले की रात लंबी हो जाती है । थके हुए का योजन लंबा हो जाता है। इसी प्रकार सद्धर्म को न जाननेवाले मूर्ख आदमी का संसार (आवागमन) लंबा हो जाता है। 

(33) “पुत्र मेरे हैं’ , “धन मेरा है’ , यह सोच मूर्ख आदमी दुख पाता है । जब शरीर तक अपना नहीं तो कहाँ पुत्र और कहॉ धन!

(34) यदि मूर्ख आदमी खुद को मूर्ख समझे तो उतने अंश में तो वह बुद्धिमान है । असली मूर्ख तो वह है, जो मूर्ख होते हुए अपने आपको बुद्धिमान समझता है ।

(35) मूर्ख दुर्बद्धि लोग पाप कर्म करते हुए, जिसका फल कड़वा होता है, अपने आप अपने शत्रु की तरह आचरण करते हैं। 

(36) जब तक पाप कर्म फ़ल नहीं देता तब तक मूर्ख आदमी उसे मधु की तरह मीठा समझता है लेकिन जब पाप कर्म फल देता है तब उसे दुख होता है । 

(37) पाप कर्म ताजे दूध की भाँति तुरंत विकार नहीं लाता। वह, भस्म से ढकी आग की तरह जलाता हुआ, मूर्ख आदमी का पीछा करता है।

(38) मूर्ख आदमी का जितना ज्ञान है, सब उसके लिए अनर्थकर होता है। जो उसकी प्रज्ञा को गिराकर उसके शुभ कर्मों का नाश कर देता है।

(39) अप्रस्तुत वस्तु की चाह करता है, भिक्षुओं में बड़ा बनने की चाह करता है, मठों और विहारों का स्वामी बनने की चाह करता है । वह दूसरे कुलों में पूजित होना चाहता है, ‘गृहस्थ और प्रव्रजित (दीक्षित) दोनों मेरा ही किया मानें’ चाहता है, ‘कृत्य-अकृत्यों में मुझ पर ही निर्भर रहें’ चाहता है, इसी प्रकार के संकल्प करनेवाले मूर्ख आदमी की इच्छाएं और अभिमान बढता है। 

(40) उस काम का करना अच्छा नहीं, जिसे करके पीछे पछताना पडे और जिसके फल को रोते हुए भोगना पड़े। 

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (41 TO 50)

(41) उस काम का करना अच्छा है, जिसे करके पीछे पछताना न पडे और जिसका फल प्रसन्नचित्त होकर भोगने को मिले। 

(42) जो आदमी अपना दोष दिखानेवाले को भूमि में छिपे धन दिखानेवाले की तरह समझे, जो संयम के समर्थक, मेधावी पंडित की संगति को, उस आदमी का कल्याण ही होता है, अकल्याण नहीं । 

(43) जो उपदेश दे, अनुशासन करे, अनुचित कार्यं से रोके, वह सत्युरुषों को प्रिय होता है और असत्युरुषों को अप्रिय ।

(44) न दुष्ट मित्रों की संगति करे, न अधम पुरुषों की संगति करें। अच्छे मित्रों की संगति कों, उत्तम पुरुषों की संगति करें.

(45) धर्म रस का पान करनेवाला प्रसन्नचित्त होकर सुखपूर्वक सोता है। पंडित जन सदा आर्यों के बताए धर्म में रमण करते हैं । 

(46) जिस प्रकार ठोस पहाड़ हवा से नहीं डोलता, उसी प्रकार पंडित निंदा और प्रशंसा से कंपित नहीं होते।

(47) सत्युरुष कहीं आसक्त नहीं होते। वे काम भोगों के लिए बातें नहीं बनाते । उन्हें चाहे दुख हो, चाहे सुख, पंडितजन विकार को प्राप्त नहीं होते ।

(48) अधर्म से न अपने लिए पुत्रधन या राष्ट्र की इच्छा करे,  न दूसरे के लिए। जो अधर्म से अपनी उन्नति नहीं चाहता, वही सदाचारी, प्रज्ञावान और धार्मिक है।

(49) जो अंधश्रद्धा रहित है, जिसने निर्वाण को जान लिया है, जिसने बंधन को काट दिया है, जिसके पुनर्जन्म की गुंजाइश नहीं, जिसने विषय भोग की आशा को त्याग दिया है, वही उत्तम पुरुष है। 

(50) जो पार पहुँचते हैँ वे तो मनुष्यों में थोडे ही हैं, बाकी आदमी तो किनारे पर ही दौडते रहते हैँ।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi
173 Gautam Buddha Quotes In Hindi

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (51 TO 60)

(51) जो संचय नहीं करते, जिन्हें भोजन की उचित मात्रा ज्ञात है, शून्यतास्वरूप तथा निमित्त रहित निर्वाण जिनका लक्ष्य है, उनकी गति उसी प्रकार अज्ञात है, जिस प्रकार आकाश में पक्षियों की गति।

(52) रमणीय बन जहॉ साधारण लोग रमण नहीं करते, वहॉ वीतरागी (अनासक्त) रमण करते हैँ क्योंकि वे काम-भोगों के पीछे दोड़नेवाले नहीं होते । 

(53) एक आदमी संग्राम में लाखों आदमियों को जीत ले और दूसरा अपने आपको जीत ले तो यह दूसरा आदमी ही सच्चा संग्राम विजयी है। 

(54) दूसरों को जीतने की अपेक्षा अपने आपको ही जीतना श्रेष्ठ है। जिस आदमी ने स्वयं का दमन कर लिया, जो अपने आपको नित्य संयत रखता है, उस आदमी की जीत को न देवता, न गंधर्व, न ब्रह्मा सहित मार ही, हार में परिणत कर सकते हैं। 

(55) एक आदमी दक्षिणा देकर महीने-महीने, सौ वर्ष तक यज्ञ करे और दूसरा आदमी किसी परिशुद्ध मनवाले का मुहूर्तभर भी सत्कार करे तो सौ वर्ष के हवन से वह मुहूर्तभर की पूजा ही श्रेष्ठ है। 

(56) एक आदमी सौ वर्ष तक वन में यज्ञ करे और एक दूसरा आदमी किसी परिशुद्ध मनवाले का मुहूर्तभर भी सत्कार करे। सो वर्ष के यज्ञ से वह मुहूर्तभर की पूजा ही श्रेष्ठ है।

(57) पुण्य की इच्छा से वर्षभर जो यज्ञ और हवन करे, वह सब सरलचित्त पुरुष को किए गए अभिवादन के चौथे हिस्से के बराबर भी नहीं है। सरलचित्त पुरुषों को किया गया अभिवादन ही श्रेष्ठ है।

(58) जो अभिवादनशील है, जो नित्य बडों की सेवा करता है, उसकी आयु, वर्ण, सुख तथा बल में वृद्धि होती है। 

(59) दुराचारी और चित्त की एकाग्रता से हीन व्यक्ति के सौ वर्ष के जीवन से सदाचारी और ध्यानी का एक दिन का जीवन श्रेष्ठ है। 

(60) दुष्प्रज्ञ (अज्ञानी) और चित्त की एकाग्रता से हीन व्यक्ति के सो वर्ष के जीवन से प्रज्ञावान और ध्यानी का एक दिन का जीबन श्रेष्ठ है। 

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (61 TO 70)

(61) आलसी और अनुद्योगी के सो बर्ष के जीबन से दृढ़तापूर्वक उद्योग करनेवाले का एक दिन का जीबन श्रेष्ठ है।

(62) उत्पत्ति और विनाश पर विचार न करते हुए सो वर्ष तक जीने से उत्पत्ति और विनाश पर विचार करते हुए एक दिन का जीना श्रेष्ठ है। 

(63) उत्तम धर्म की ओर ध्यान न देते हुए सौ बर्ष के जीने से उत्तम धर्म की ओर ध्यान देते हुए एक दिन जीना श्रेष्ठ है।

(64) शुभ कर्म करने में जल्दी करे, पापों से मन कौ हटाएँ। शुभ कर्म करने में ढील करने पर मन पाप में रत होने लगता है । 

(65) यदि पाप करें तो उसे बार-बार न करें, उसमें रत न हों । पाप का संचय दुख का कारण होता है।

(66) यदि शुभ कर्म करे तो उसे बार-बार करे, उसमें रत हों । पुण्य का संचय सुख का कारण होता है। 

(67) पापी को भी तब तक भला लगता है, जब तक पाप फल नहीं देता। जब पाप फल देता है तब उसे बुरा लगता है। 

(68) पुण्य करनेवाले को भी तब तक बुरा लगता है, जब तक पुण्य फल नहीं देता। जब पुण्य फल देता है तब उसे अच्छा लगता है। 

(69) मेरे पास न आएगा’, सोचकर पाप की अवहेलना न करे। बूंद – बूंद पानी गिरने से घड़ा भर जाता है। मूर्ख आदमी थोड़ा – थोड़ा  पाप इकट्ठा कर लेता है। 

(70) थोडे काफिले और बहुत धनवाला व्यापारी भययुक्त मार्ग को छोड देता है अथवा जीने की इच्छावाला विष को छोड़ देता है । उसी प्रकार मनुष्य पापों को छोड दे।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (71 TO 80)

(71) यदि हाथ में घाव न हो तो हाथ में बिष लिया जा सकता है क्योंकि घावरहित हाथ में बिष नहीं चढता। इसी प्रकार संसार से आसक्लि न करनेवाले को पाप नहीं लगता।

(72) जो शुद्ध, निंर्मलं, दोषरहित मनुष्य को दोषी ठहराता है, उस दोषी ठहरानेवाले मूर्ख को ही पाप लगता है । जैसे हवा की दिशा के विरुद्ध फेंकी हूई सूक्ष्म धूलि फेंकनेवाले पर ही पड़ती है।

(73) कोई संसार में उत्पन्न होते हैं। पापी नर्क में जाते हैँ। शुभ कर्मी स्वर्ग में जाते हैँ और जो चित्त के मलों से रहित हैँ, वे निर्वाण को प्राप्त होते हैँ ।

(74) न आकाश में, न समुद्र की तह में, न पर्वतों के गहर में – संसार में कहीं कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां रहकर आदमी पाप कर्म के फल से बच सके।

(75) पाप कर्म करता हुआ मूर्ख आदमी कभी नहीं बूझता। दुर्बुद्घ अपने उन्ही कर्मों के कारण आग से जलते हुए की तरह तपता है। 

(76) न आकाश में, न समुद्र की तह में, न पर्वतों के गहर में  संसार में कहीँ कोई ऐसी जगह नहीं है, जहॉ रहनेवाला मृत्यु से बच सके ।

(77) सभी दंड से डरते हैं, सभी को मृत्यु से भय लगता है, सभी को जीवन प्रिय है। इसलिए सभी को अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मरवाएँ।

(78) न पुत्र रक्षा कर सकते हैँ, न पिता, न रिश्तेदार । जब मृत्यु पकड़ती है तब रिश्तेदार नहीं बचा सकते।

(79) सुख की चाह से जो सुख चाहनेवाले प्राणियों को डंडे से मारता है, वह मरकर भी सुख नहीं पाता है ।

(80) थोडे से सुख के परित्याग से यदि बहुत सुख की प्राप्ति दिखाईं दे तो बुद्धिमान इंसान को चाहिए कि वह बहुत सुख का खयाल करके, थोड़े सुख को छोड़ दे।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (81 TO 90)

(81) किसी से कठोर वचन मत बोलो, दूसरे तुमसे कठोर वचन बोलेंगे। दुर्वचन दु:खदायी होते हैं । बोलने के बदले में तुम दंड पाओगे।

(82) यदि पीट जाने पर (टूटे) कांसे की तरह अपने आपको नि:शब्द रखो तो तुमने निर्वाण पा लिया, तुम्हारे लिए कलह नहीं रहा।

(83) जो दंडरहितों को दंड से पीडित करता है या दोष रहितों को दोष लगाता है, उसे इन दस बातों में से कोई एक बात शीघ्र ही होती है –  1. तीव्र वेदना, 2. हानि, 3. अंग-भंग, 4. बीमारी, 5. पागलपन, 6. राज़दंड, 7. कडी निंदा, 8. रिश्तेदारों का विनाश, 9. भोगों का क्षय और 10. आग उसके घर को जला देती है।

(84) न नंगे रहने से, न जटा धारण करने से, न कीचड लपेटने से, न उपवास करने से, न कडी भूमि पर सोने से, न धूल लपेटने से, न उकडू बैठने से ही उस आदमी की शुद्धि होती है, जिसके संदेह बाकी हैँ।

(85) अलंकृत होते हुए भी यदि उसका आचरण सम्यक है, यदि वह शांत है, यदि वह नियत ब्रह्मचारी है और यदि उसने सभी प्राणियों के प्रति दंड त्याग दिया है तो बही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, वही भिक्षु है।

(86) कुछ आदमी ऐसे होते हैँ, जिन्हें उनकी अपनी लज्जा निषिद्ध कर्म करने से रोक लेती है। जिस प्रकार उत्तम घोडा चाबुक सह नहीं सकता , उसी प्रकार वे निंदा सह नहीं सकते।

(87) इस विचित्र शरीर को देखो, जो व्रणों से युक्त है, जो फूला है, जो रोगी है, जो नाना प्रकार के संकल्पो से युक्त है, जिसकी स्थिति निश्चित नहीं है।

(88) यह शरीर जीर्ण-शीर्ण है, रोग का घर है, भंगुर (अनित्य, अस्थायी) है,  सड़कर भग्न होनेवाला है, सभी जीवितों को मरना होता है।

(89) अज्ञानी पुरुष बैल की तरह बढता जाता है। उसका मांस बढता है, प्रज्ञा नहीं ।

(90) गृहकारक को दूँढ़ते हुए मैँ अनेक जन्मो तक लगातार संसार में दौड़ता रहा। बार-बार जन्म लेना दुख है। गृहकारक ! तू दिखाई दे गया। अब फिर घर नहीं बन सकेगा। तेरी सब कडियां टूट गई। घर का शिखर बिखर गया । चित्त संस्कार रहित हो गया। तृष्णाओँ का क्षय हो गया ।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (91 TO 100)

(91) आदमी अपना स्वामी आप है, दूसरा कौन स्वामी हो सक्ता है? अपने आपको दमन (संयम) करनेवाला दुर्लभ स्वामित्व को पाता है।

(92) अपना किया पाप अपने को मलिन करता है, अपना न किया पाप अपने को शुद्ध करता है। प्रत्येक आदमी कीं शुद्धि-अशुद्धि अलगअलग है। एक आदमी दूसरे को शुद्ध नहीं कर सकता।

(93) यह संसार अंधा है । यहॉ थोडे ही देखते हैँ। जाल से मुक्त पक्षियों की तरह थोडे ही लोग स्वर्ग जाते हैँ। 

(94) पाप कर्म न करना, शुभ कर्म करना, चित्त परिशुद्ध रखना, यही है बुद्धों की शिक्षा।

(95) किसी की निंदा न करना, किसी का घात न करना, भिक्षु नियमों का पालन करना, उचित मात्रा में भोजन करना, एकांत में सोना-बैठना, चित्त को योग-अभ्यास में लगाना, यही है बुद्धों की शिक्षा।

(96) भय के मारे मनुष्य पर्वत, वन, उद्यान, वृक्ष, चैत्य आदि बहूत चीजों की शरण ग्रहण करते हैँ। लेकिन यह शरण ग्रहण करना कल्याणकर नहीं, उत्तम नहीँ। इन शरणों को ग्रहण करके कोई सारे के सारे दुख से मुक्त नहीं हो सकता।

(97) जो बुद्ध, धर्म, संघ की शरण ग्रहण करता है, जो चारों आर्य सत्यों को भली प्रकार प्रज्ञा से देखता है 1. दुख, 2. दुख की उत्पत्ति, 3. दुख का विनाश और 4. दुख का उपशमन करनेवाला आर्य-अष्टांगिक मार्ग – उसका यह शरण ग्रहण करना कल्याणकर है, यही शरण उत्तम है। इस शरण को ग्रहण करके मनुष्य सब दुखों से मुक्त होता है ।

(98) श्रेष्ठ पुरुष का ज़न्म दुर्लभ है, वह सब जगह पैदा नहीं होता। जिस कुल में वह धीर पैदा होता है, उस कुल में सुख की बृद्धि होती है।

(99) बुद्धों का पैदा होना सुखकर है, सदृधर्म का उपदेश सुखकर है, संघ में एकता का होना सुखकर है और सुखकर है मिलकर तप करना।

(100) वैर करनेवाले मनुष्यों में अवैरी बने रहकर हम सुखपूर्वक जीते हैं। वैरी मनुष्यों में हम अवैरी बनकर विचरते हैं । 

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (101 TO 110)

(101) रोगी मनुष्यों में रोग रहित होकर हम सुखपूर्वक जीते हैं। रोगी मनुष्यों मैं हम स्वस्थ बनकर विचरते हैं। 

(102) निरोग रहना परम लाभ है, संतुष्ट रहना परम धन, विश्वास सबसे बडा बंधु है, निर्वाण सबसे बड़ा सुख । 

(103) राग के समान अग्नि नहीं, द्वेष के समान मल नहीं । पाँच स्कंधो (पंच इंद्रियों से चिपकाव) के समान दुख नहीं । शांति से बढकर सुख नहीं । 

(104) सत्युरुषों का दर्शन करना अच्छा है, सत्युरुषों की संगति सदा सुखकर है और मूखों का दर्शन न होने से ही आदमी सदा सुखी रहता है। 

(105) मूर्खो की संगति करनेवाला दीर्घ काल तक शोक करता है, मूखों की संगति शत्रु की संगति की तरह सदा दु:खदायी होती है और धैर्यंवानों की संगति बंधुओं कीं संगति की तरह सुखदायी होती है। 

(106) काम पड़ने पर मित्र सुखकर है, जिस-तिस चीज़ से संतुष्ट रहना सुखकर है, जीवन के क्षय होने के समय पुण्य सुखकर है लेकिन सबसे बढकर सुखकर है, सारे दुखों का नाश ।

(107) प्रियों का साथ मत करो और अप्रिर्यों का साथ कभी न करी। प्रियों का अदर्शन और अप्रिर्यों का दर्शन दुखद होता है। इसलिए किसी को प्रिय न बनाएँ प्रिय का नाश बुरा लगता है  ; उनके दिल में गाँठ नहीं होती, जिनके प्रिय-अप्रिय नहीं होते । 

(108) प्रिय से शोक और भय उत्पन्न होता है। जो प्रिय से मुक्त है, उसे शोक नहीं, भय कहॉ से होगा? 

(109) प्रेम, काम, राग, तृष्णा से शोक उत्पन्न होता है। जो इनसे मुक्त है, उसे भय कहॉ से होगा?

(110) जो शीलवान है, जो विद्वान है, जो धर्म में स्थित है, जो सत्यवादी है और जो अपने काम को पूर्ण करनेवाला है, ऐसे इंसान से लोग प्यार करते हैं । 

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (111 TO 120)

(111) जिसे निर्वाण की अभिलाषा है, जिसने उसे मन से स्पर्श किया है, जिसका चित काम – भोगो में सलग्न नहीं है, वह ऊर्ध्व स्त्रोत ( उच्चतम स्त्रोत ) कहलाता हैं।

(112) क्रोध को अक्रोध से, बुराई को भलाई से, कंजूसी को दान से और झुठ को सत्य से जीतें। 

(113) जो क्रोध को छोड़ दे, अभिमान को छोड़ दे, सब बंधनों को पार कर जाए, ऐसे इंसान को जो नाम-रूप में आसक्त न हो, जो परिग्रह Devoid of  (रहित हो)  उसे दुख नहीं सताते.

(114) हे अतुल ! यह पुरानी बात है , आज की नहीं । चुप बैठे रहनेवाले की भी निंदा होती है, बहुत बोलनेवाले की भी निंदा होती है, कम बोलनेवाले की भी निंदा होती है), दुनिया में ऐसा कोई नहीं, जिसकी निंदा न होती हो ।

(115) ऐसा इंसान जिसकी या तो बिलकुल प्रशंसा ही प्रशंसा होती है या निंदा ही निंदा; न हुआ, न है, न होगा। 

(116) काया, वाणी, मन कीं चंचलता से बचे । इन पर संयम रखें, शरीर वाणी और मन का दुश्चरित्र छोडकर सदाचरण करें । 

(117) जो काया, वाणी, मन से संयत  है, वे ही अच्छी तरह से संयत कहे जा सकते है। 

(118) जिस प्रकार लोहे से उत्पन्न मोर्चा लोहे से पेदा होकर लोहे को ही खा डालता है, उसी प्रकार अति चंचल मनुष्य के अपने ही कर्म उसे दुर्गति को ले जाते है। 

(119) आवृत्ति न करना वेद मंत्रों का मल है, मरम्मत न करना घरों का मल है, आलस्य शरीर के सौंदर्य का मल है और असावधानी पहरेदार का मल है । दुष्चरित्र होना  स्त्री का मल है , कंजूस होना दाता का मल है । लेकिन इन सब बातों से बढ़कर मल है – अविद्या । भिक्षुओं ! इस मल को छोड़कर निर्मल बनो ।

(120) जो हिंसा करता है, झूठ बोलता है, जो  चोरी करता है, जो पराई स्त्री के पास जाता है और जो मद्यपान करता है, वह इंसान यही इसी लोक में अपनी जड़ खोदता है ।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (121 TO 130)

(121) लोग अपनी-अपनी श्रद्धा और प्रसन्नता के अनुसार दान देते हैं, जो दूसरों के खाने-पीने में असंतोष प्रकट करता है, उसे ना रात को शांति प्राप्ति होती है, न दिन को । लेकिन जिसमें यह भाव जड़ से जाता रहा है, वह रात को भी, दिन को भी, सदा शांति से रहता है ।

(122) राग के समान आग नहीं, द्वेष के समान ग्रह नहीं,  मोह के समान जाल नहीं और तृष्णा के समान नदी नहीं ।

(123) दूसरों के दोष देखना आसान है, अपने दोष देखना कठिन । इंसान दूसरों के दोषों को तो भूसे (तिनके) की भांति उड़ाता है किंतु अपने दोषों को ऐसे ढकता है,  जैसे बेईमान जुआरी पासे को ।

(124) दूराचरण युक्त मनुष्य दूसरों से भीख मांगनेवाला होने मात्र से भिक्षु नहीं होता।

(125) जो पाप और पुण्य से परे हो गया है, जो ब्रह्मचारी है, जो ज्ञानपूर्वक लोक में विचरता है, वह भिक्षु है।

(126) मार्गो में अष्टांगिक मार्ग श्रेष्ठ हैं, सत्यों में चार आर्य सत्य श्रेष्ठ हैं, धर्म में वैराग्य श्रेष्ठ है और चक्षुमान (बुद्ध) श्रेष्ठ है।

(127) जोग उद्योग नहीं करता, युवा और बली होकर भी आलस्य से युक्त है, जिसका मन व्यर्थ के संकल्पों से भरा है, ऐसा आलसी इंसान प्रज्ञा के मार्ग को प्राप्त नहीं कर सकता ।

(128) जब तक पुरुष में स्त्री की अणु मात्रा भी कामना बनी रहती है, तब तक वह वैसे ही बंधा रहता है, जैसे दूध पीने वाला बछड़ा अपनी मां से ।

(129) पुत्र और पशु में आसक्त चित्त मनुष्य को मृत्यु वैसे ही ले जाती है, जैसे : सोए गांव को नदी की बड़ी बाढ़।

(130) जिनकी की दिन रात बुद्ध, धर्म, संघ, कार्य,अहिंसा में रत, योग -अभ्यास भावना में स्मृति बनी रहती है, गौतम बुध के वे शिष्य खूब जागरूक रहते हैं।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (131 TO 140)

(131) जो श्रद्धावान है, जो सदाचारी है, जो यशस्वी है, जो संपत्तिशाली है, वे जहां-जहां जाते हैं, वहां-वहां सत्कार पाते हैं।

(132) सत्पुरुष हिमालय पर्वत की तरह दूर से प्रकाशित होते हैं, असत्पुरुष रात में फेंके बाण की तरह दिखाई नहीं देते।

(133) असत्यवादी नर्क में जाता है। जो करके ‘नहीं किया’ कहता है, वह भी नर्क में जाता है। दोनों ही प्रकार के नीच कर्म करने वाले मरकर बराबर हो जाते हैं।

(134) जैसे सीमांत देश का गढ़ (नगर) अंदर-बाहर से सुरक्षित होता है, उसी तरह से अपनी संभाल करे, एक क्षण भी न जाने दे। समय हाथ से चले जाने पर नर्क में पड़कर शोक करना होता है।

(135) अलज्जा के काम में जो लज्जा करते हैं, लज्जा के काम में जो लज्जा नहीं करते, ऐसे झूठे धारणा वाले प्राणी दुर्गति को प्राप्त होते हैं।

(136) अभय के स्थान में जो भय करते हैं, भय मैं जो भय रहित रहते हैं, ऐसे झूठी धारणा वाले प्राणी दुर्गति को प्राप्त होते हैं।

(137) अदोष को जो दोष समझते हैं, दोष को जो अदोष समझते हैं, ऐसे झूठे धारणा वाले प्राणी दुर्गति को प्राप्त होते हैं।

(138) दोष को जो दोष करके जानते हैं, अदोष को अदोष, ऐसे ठीक धारणा वाले प्राणी सुगति को प्राप्त होते हैं।

(139) जैसे युद्ध में हाथी धनुष से गिरे बाण को सहन करता है, वैसे ही मैं कटु वाक्यों को सहूंगा क्योंकि संसार में दुर्जन बहुत है।

(140) शिक्षित हाथी को युद्ध में ले जाते हैं, शिक्षित हाथी पर राजा चढ़ता है, मनुष्यों में शिक्षित मनुष्य श्रेष्ठ है, जो कटु वाक्य को सह सकता है।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (141 TO 150)

(141) जो आलसी, बहुत खानेवाला, निंद्रालू करवट बदल- बदलकर सोनेवाला, दाना खाकर पले मोटे सूअर की भांति होता है, वह मंद गति बार-बार गर्भ (बंधन) में पड़ता है।

(142) जिसके मन में बहुत संकल्प-विकल्प उठते हैं,  जिसके मन में तीव्र राग है, जो शुभ ही शुभ देखता है, उसकी तृष्णा बढ़ती है, वह अपने बंधन को और भी दृढ़ करता है।

(143) जो संकल्प-विकल्प को शांत करने में लगा है, जो जागरूक रहकर सदा अशुभ को देखता है, वह मार के बंधन को काटेगा, वही उसे नष्ट करेगा।

(144) संसार में मातृ-सेवा सुखकर है और सुखकर है पितृ सेवा। संसार में श्रवणत्व (सन्यास) सुखकर है और सुखकर है निष्पाप होना ( ब्रह्मणत्व ) ।

(145) बुढ़ापे तक सदाचारी रहना सुखकर है, स्थिर-श्रद्धा सुखकर है, प्रज्ञा की प्राप्ति सुखकर है और सुखकर है पापों का न करना।

(146) जिस प्रकार जब तक जड़ पूरी तरह नहीं उखड़ जाती तब तक कटा हुआ वृक्ष भी उग जाता है। उसी प्रकार जब तक तृष्णा पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाती तब तक बार-बार (दु:ख) पैदा होता रहता है।

(147) धर्म का दान सब दानों से बढ़कर है, धर्म रस सब रसों से बढ़कर है, धर्म रति सब  रतियों से बढ़कर है।

(148) जिस आदमी के छत्तीस स्त्रोत, मन को अच्छी लगने वाली चीजों की ही ओर जाते हो, उस झूठी धारणा वाले आदमी को उसके रागाश्रित संकल्प बहाकर ले जाते हैं।

(149) आंख, कान, नाक, जिह्वा, शरीर, हाथ-पांव और वाणी से जो संयत है, जो समाधियुक्त है, जो अकेला रहता है, जो मनन करके बोलता है, जो उद्धत नहीं है, जो अर्थ  व धर्म को प्रकट करता है, जिसका भाषण मधुर होता है, जो संतुष्ट है, उसे भिक्षु कहते हैं।

(150) अपने लाभ की अवहेलना न करें और न दूसरे के लाभ की स्पृहा (रुकावट) । दूसरे के लाभ की स्पृहा करने वाला भिक्षु चित्त की एकाग्रता को प्राप्त नहीं करता।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (151 TO 160)

(151) सारे जगत में जिसका कुछ भी ‘ मेरा ‘ नहीं है, जो किसी वस्तु के न रहने पर शोक नहीं करता, वही भिक्षु कहलाता है।

(152) जिसे प्रज्ञा नहीं, उसका चित्त एकाग्र नहीं होता, जिसका चित्त एकाग्र नहीं वह प्रज्ञावान नहीं हो सकता। जिसमें ध्यान और प्रज्ञा दोनों है, वही निर्वाण के पास है।

(153) बुद्धिमान भिक्षु को पहले इंद्रिय-संयम, संतोष और भिक्षु-नियमों का पालन करना होता है। उसे चाहिए कि वह शुद्ध आजीविकावाले, आलस्यरहित कल्याण-मित्रों की संगति करें।

(154) जिसका शरीर शांत है, जिसकी वाणी शांत है, जिसका मन शांत है, जो समाधि युक्त है, जिसने लौकिक भोगो को छोड़ दिया है, वह भिक्षु उपशांत कहलाता है।

(155) जो स्वयं अपने आपको प्रेरित करेगा, जो स्वयं अपनी परीक्षा करेगा, वह आत्मसंयमी, स्मृतिमान भिक्षु  सुखपूर्वक रहेगा।

(156) जो ध्यानी है, जो निर्मल है, जो एकांत सेवी है, कृत कृत्य है, जो भोग रहीत है, जिसने उत्तम अर्थ को पा लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

(157) दिन में सूर्य चमकता है, रात को चंद्रमा चमकता है, कवचबद्ध होने पर क्षत्रिय चमकता है, ध्यानी होने पर ब्राह्मण चमकता है लेकिन बुद्ध अपने तेज से सदैव दिन-रात चमकते हैं।

(158) ब्राह्मण के लिए यह बात कम कल्याणकारी नहीं, जो वह प्रिय वस्तुओं से मन को हटा लेता है; जहां-जहां मन हिंसा से विमुख (दूर) होता है, वहां दु:ख शांत होता ही है।

(159) जिसके शरीर, वाणी तथा मन से कोई पाप नहीं होता, जो इन तीनों स्थानों में संयत है, उसे में ब्राह्मण कहता  हूं।

(160) न जटा से, न गोत्र से, न जन्म से ब्राह्मण होता है; जिसमें सत्य और धर्म है, वही इंसान पवित्र है और वही ब्राह्मण है।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (161 TO 170)

(161) यह दुर्बुद्धि ! जटाओ से तुझे क्या लाभ और मृग चर्म के पहनने से क्या ? अंदर से तो तू मेला है, बाहर से धोता है।

(162) जो सब बंधनों को काटता है, जो निर्भय है, जो संग और आसक्ति से रहित है, उसे में ब्राह्मण कहता हूं।

(163) जो इसी जन्म में अपने दु:ख के क्षय को जानता है, जिसने अपना भार उतार दिया है, जो आसक्ति रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

(164) जो विरोधियों में अविरोधी, जो दंड धारियों में दंड त्यागी, जो संग्रह करनेवालों में असंग्रही है, उसे में ब्राह्मण कहता हूं।

(165) चाहे लंबी हो, चाहे छोटी, चाहे मोटी हो, चाहे पतली, चाहे अच्छी हो, चाहे बुरी, जो संसार में किसी भी चीज की चोरी नहीं करता, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

(166) इस लोक और परलोक की, किसी चीज में जिसकी इच्छा नहीं है, जो इच्छा रहित है, जो आसक्ति रहित है, उसे में ब्राह्मण कहता हूं।

(167) जो इस संसार में पुण्य और पाप दोनों से परे है, जो शोकरहित है, जो निर्मल है, जो शुद्ध है, उसे में ब्राह्मण कहता हूं।

(168) जो चंद्रमा की भांति विमल, शुद्ध और स्वच्छ है, जिसकी भव तृष्णा नष्ट हो गई है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

(169) जिसने इस दुर्गम संसार जन्म-मरण के चक्कर में डालनेवाले मोह स्वरूप उलटे मार्ग को त्याग दिया, जो पार कर गया, जो ध्यानी है, जो स्थिर है, जो संशय रहित है,  जिसने स्थिरता को प्राप्त कर लिया, उसे में ब्राह्मण कहता हूं।

(170) जिसने मनुष्य भोगों  को छोड़ दिया, दिव्य भोगों को भी छोड़ दिया, जो सभी लोगों के प्रति अनासक्त हैं, उसे में ब्राह्मण कहता हूं।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (171 TO 180)

(171) जो प्राणियों की मृत्यु तथा उत्पति को भली प्रकार जानता है, जो आसक्ति रहित सुगती प्राप्त बुद्ध है, उसे में ब्राह्मण कहता हूं।

(172) अतीत, वर्तमान या भविष्य में जिसकी कहीं कुछ आसक्ति नहीं है, जो परिग्रह रहित (अपरिग्रह), उपादान रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

(173) जो श्रेष्ठ है, जो वीर है, जो महर्षि है, जो विजेता है, जो स्थिर है, जो स्नातक (विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त व्यक्ति, नित्य) है,  जो बुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

(174) अतीत पे ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो।

(175) स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है।

(176) तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य।

(177) अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें. दूसरों पर निर्भर ना रहे।

(178) किसी विवाद में हम जैसे ही क्रोधित होते हैं हम सच का मार्ग छोड़ देते हैं, और अपने लिए प्रयास करने लगते हैं।

(179) किसी जंगली जानवर की अपेक्षा एक कपटी और दुष्ट मित्र से अधिक डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुक्सान पहुंचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि को नुक्सान पहुंचा सकता है।

(180) आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये. जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (181 TO 190)

(181) घृणा घृणा से नहीं प्रेम से ख़त्म होती है, यह शाश्वत सत्य है।

(182) वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वो जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है।

(183) क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने के सामान है; इसमें आप ही जलते हैं।

(184) मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है।

(185) बिना सेहत के जीवन जीवन नहीं है; बस पीड़ा की एक स्थिति है- मौत की छवि है।

(186) हर चीज पर सन्देह करो. स्वयं अपना प्रकाश ढूंढो।

(187) शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है. शक लोगों को अलग करता है. यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़त्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है. यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।

(188) सत्य के मार्ग पे चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है; पूरा रास्ता ना तय करना, और इसकी शुरआत ही ना करना।

(189) ख़ुशी अपने पास बहुत अधिक होने के बारे में नहीं है. ख़ुशी बहुत अधिक देने के बारे में है।

(190) मन और शरीर दोनों के लिए स्वास्थय का रहस्य है- अतीत पर शोक मत करो, ना ही भविष्य की चिंता करो, बल्कि बुद्धिमानी और ईमानदारी से वर्तमान में जियो।

173 Gautam Buddha Quotes In Hindi (191 TO 200)

(191) अंत में ये चीजें सबसे अधिक मायने रखती हैं: आपने कितने अच्छे से प्रेम किया? आपने कितनी पूर्णता के साथ जीवन जिया? आपने कितनी गहराई से अपनी कुंठाओं को जाने दिया।

(192) अगर आप वास्तव में स्वयं से प्रेम करते हैं, तो आप कभी भी किसी को ठेस नहीं पहुंचा सकते।

(193) हमें हमारे सिवा कोई और नहीं बचाता. न कोई बचा सकता है और न कोई ऐसा करने का प्रयास करे. हमें खुद ही इस मार्ग पर चलना होगा।

(194) शरीर को अच्छी सेहत में रखना हमारा कर्तव्य है. नहीं तो हम अपना मन मजबूत और स्पष्ठ नहीं रख पायेंगे।

(195) जो आप सोचते हैं वो आप बन जाते हैं।

(196) आप पूरे ब्रह्माण्ड में किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश कर सकते हैं जो आपसे अधिक आपके प्रेम और स्नेह के लायक है, और वह व्यक्ति आपको कहीं नहीं मिलेगा. जितना इस ब्रह्माण्ड में कोई और आपके प्रेम और स्नेह के अधिकारी है, उतना ही आप खुद हैं।

(197) आप केवल वही खोते हैं जिससे आप चिपक जाते हैं।

(198) हर सुबह हम पुनः जन्म लेते हैं. हम आज क्या करते हैं यही सबसे अधिक मायने रखता है।

(199) कोई व्यक्ति इसलिए ज्ञानी नहीं कहलाता क्योंकि वह सिर्फ बोलता रहता है; लेकिन अगर वह शांतिपूर्ण, प्रेमपूर्ण और निर्भय है तो वह वास्तव में ज्ञानी कहलाता है।

(200) जो जगा है उसके लिए रात लम्बी है; जो थका है उसके लिए दूरी लम्बी है, जो मूर्ख सच्चा धर्म नहीं जानता उसके लिए जीवन लम्बा है।

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